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लेखनी कहानी -28-Feb-2022 बंद दरवाजे (2)

आज गली के नुक्कड़ पर बड़ी गरमा गरम बहस छिड़ी हुई थी । ये नुक्कड़ ही तो है जहाँ पर लोग आते जाते टकरा जाते हैं । राम राम कर लेते हैं और देश दुनिया की बातों पर चर्चा कर लिया करते हैं । कभी कभी अपनी परेशानियों को भी शेयर कर लेते हैं । अच्छा खासा जमघट लग जाता है । मौहल्ले के सभी "बातूनी" लोगों के लिए "नुक्कड़" वरदान सिद्ध हो रहा है । अल सुबह सैर करने के बाद यहां बैठकर "हथाई" करने का आनंद ही कुछ और होता है । ऐसा आनंद तो स्वर्ग में भी कहाँ नसीब होता है । लोग चाहे मंदिर जायें या नहीं मगर "हथाई" करने यहां जरूर आते हैं । 


आज हंसमुख लाल जी ने "बंद दरवाजों" पर बात छेड़ दी थी । कह रहे थे " आजकल पता नहीं क्या हो गया है लोगों को कि वे अपने घरों के दरवाजे बंद रखते हैं । बंद दरवाजे "बंद दिलों" की तरह होते हैं । अगर दिल बंद रहेंगे तो लोग एक दूसरे से कैसे मिलेंगे ? उसी तरह बंद दरवाजों के कारण सामाजिक मेल मिलाप भी कम हो गया है और मोहल्ले में वो पहले जैसा अपनापन नजर नहीं आता है" । 

एक बार कोई विषय मिलना चाहिए फिर तो लोग उस पर अपने ज्ञान की गंगा बहाना शुरू कर देते हैं । चोर सिंह कहने लगे " भैया , आजकल गली मोहल्ले में चोरियां बहुत होने लगी हैं । जरा सा दरवाजा खुला रहा नहीं कि चोर घर में घुसकर चोरी कर जाते हैं । आजकल तो चोर आंखों में से काजल तक चुरा ले जाते हैं और आदमी को कानों कान खबर तक नहीं होती । चोरी होने पर पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है । और अगर आपने इधर उधर से सिफारिश लगवा कर या पुलिस की मुठ्ठी गरम कर रिपोर्ट लिखवा भी ली तो चोर को पकड़ने के लिए जाने हेतु एक गाड़ी चाहिए । उस गाड़ी में दो चार पुलिस वाले आपके साथ चलेंगे तो उनके "खाने पीने" का खर्चा चाहिए । रात को "सोने का जुगाड़" चाहिए । इसके बाद भी आपका सामान मिल जाये तो यह आपकी किस्मत है । सामान मिलने पर वापिस देने के लिए "लिखापढ़ी" करनी होती है । इस "लिखापढ़ी" के लिए अलग से "मेहनताना" चाहिए । इतनी मशक्कत के बाद तो हर कोई कह देता है कि भैया अब रहने ही दो । तुम्हीं रख लो इस सामान को । हम तो "सब्र" रख लेंगे । शायद इसीलिए लोग आजकल अपने घरों के दरवाजे बंद रखते हैं " चोर सिंह ने अपनी बात खतम की । 

इस पर सूंघनी चाची बहुत नाराज हुई । सूघनी चाची की सूंघने की शक्ति का सब लोग लोहा मानते हैं । कहते हैं कि सूंघनी चाची बालू रेत में भी इत्र की सुगंध सूंघने में माहिर हैं । गुस्सा दर्शाते हुए कहने लगी "भैया, जी बात नाहें । आजकल लोग घरों में पकने वाली खिचड़ी सूंघने में लगे रहते हैं । उन्हें अपने घर से ज्यादा पड़ौसियों के घरों की चिन्ता लगी रहती है । पड़ौसी के घर में क्या पक रहा है ? बस, इसी की थाह लेने में ही सारी उम्र निकल जाती है । अगर दरवाजा खुला होता है तो घर में पकने वाली "खिचड़ी" की खुशबू दूर दूर तक जाती है । लोग सूंघते सूंघते घर में घुस जाते हैं । अब कोई घर में ही घुस आये तो उसके सामने खिचड़ी परोसनी पड़ेगी ना ? तो इसलिए लोग अपने घर के दरवाजे बंद रखते हैं । ना दरवाजा खुलेगा, ना खुशबू फैलेगी और ना ही लोग घर में घुसेंगे । शायद यही कारण होगा" । 

इतने में छमिया भाभी भी आ गईं । कहने लगी "आजकल दिलफेंक मजनूं बहुत घूमते हैं गलियों में । वे घर की बहू बेटियों की टोह लेते रहते हैं । खुले दरवाजे से उन तक पहुंचना बहुत आसान होता है और वे उन्हें आसानी से शिकार बना सकते हैं । जब कोई मछुआरा कांटे में मांस का लोथड़ा लगा कर पानी में डालता है तो कुछ भोली भाली मछलियां उसमें फंस ही जाती हैं । इन "आशिक शिकारियों" से "मासूम मछलियों" को बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं । हालांकि खिड़कियों से "ताका झांकी" चलती रहती है । कुछ लोग तो खिड़की भी बंद ही रखते हैं । ना रहेगा बांस , ना बजेगी बांसुरी" । 

दिखावटी लाल बहुत देर से इस चर्चा को सुन रहे थे । वे भी अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने लगे । "दरअसल , लोग वैसे नहीं होते जैसे दिखते हैं । अब स्मार्ट सिंह को ही देख लो । उम्र 60 की हो गई है लेकिन डाई वाई लगाकर , फेशियल करवा कर , जिम ज्वाइन करके खुद को 40 जैसा "शो" करते हैं । उसी तरह लोग घर के बाहर की दीवारों का रंग रोगन करके घर के अंदर टूटी पड़़ी फर्श को छुपाने के लिए दरवाजे बंद रखते हैं । 'घर में नहीं हैं दाने , अम्मा चली भुनाने" वाली कहावत वाले लोग अपनी माली हालत को छुपाने के लिए भी घर के दरवाजे बंद रखते हैं । क्या पता खुले दरवाजों से उनकी गरीबी उनका मजाक उड़ा दे । शायद यही कारण हो सकता है" । 

सयाने लाल जी का सब लोग आदर करते हैं । उन्होंने बाल भी धूप में सफेद नहीं किये और न ही उन्हें रंगा है । सीधी सच्ची बात कहते हैं चाहे किसी को अच्छी लगे या नहीं । बहस में भाग लेते हुए बोले "बंद दरवाजे अपराधों को छुपाने का काम करते हैं । लोगों ने इन्हीं बंद दरवाजों के पीछे न जाने कितनी बहुएं दहेज की खातिर जला दीं ? न जाने कितनों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया । न जाने कितनी बालिकाओं का गला घोंटा ? न जाने कितनी भ्रूण हत्याएं की हैं । बेटे बहुओं ने न जाने कितने मां बापों पर जुल्म ढाये हैं , इन बंद दरवाजों ने वे सब अपराध छुपाए हैं । घर के अंदर न जाने कितनी नारियों की आबरू लुटी है जो इन बंद दरवाजों के पीछे घुटी है । इन बंद दरवाजों में न जाने कितने राज दफन हैं जो अगर खुल जायें तो वे इनकी मौत का बन जाते कफन हैं । और भी बहुत सारी बातें हैं जिन्हें सुनाते सुनाते कई युग बीत सकते हैं मगर वे दास्तान खत्म नहीं होंगी । आजकल इसीलिए दरवाजे बंद रहते हैं" । 

सयाने लाल जी की बात को काटने की हिम्मत किसी में नहीं थी । 
हरिशंकर गोयल "हरि"
28.2.22 

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2 Comments

Mohammed urooj khan

28-Feb-2022 07:10 PM

अच्छी बात कहीं आपने अपने लफ्जो से

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Hari Shanker Goyal "Hari"

02-Mar-2022 08:23 AM

धन्यवाद जी

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